Excerpt from Mahadevi Verma’s Ramayana Poem राम–भरत मिलन

राम-भरत मिलन: महादेवी वर्मा की प्रेरणादायक कविता

Accepting the demand of step-mother Kaikeyi for a 14 year banvaas, Ram along with wife Sita and brother Lakshmana, made abode in the forest of Chitrakoot, Madhya Pradesh. One day Lakshmana saw from a distance, Bharat approaching with an army and thought that he wanted to kill Ram in order to permanently get the kingdom of Ayodhya (Uttar Pradesh, India). In anger, Lakshmana pleads with Ram to prepare for an armed duel with Bharat in order to defeat and kill him. The poem below is an excerpt from Mahadevi Verma’s Ramayana, where Maryada-Purushottam Ram replies to Lakshmana and the subsequent meeting with Bharat.

प्रेरणादायक कविता राम-भरत मिलन: महादेवी वर्मा

क्या कभी पहले भरत ने किया कुछ प्रतिकूल?
जो तुम्हें इस भाँति हो भय आज शंका मूल।

क्या किसी आपत्ति में हो पुत्र से हत तात?
प्राण–सम निज बंधु का ही बंधु कर दे घात?

कह रहे इस भाँति तुम यदि राज्य हेतु विशेष,
‘राज्य दो इसको’ कहूँगा मैं भरत को देख।

पिता से प्रतिश्रुति, करूँ यदि मैं भरत–वध आज,
क्या करूँगा ले उसे जो है कलंकित राज्य?

बंधु मित्रों के निधन से प्राप्त वैभव–सार
अन्न विषमय ज्यों मुझे होगा नहीं स्वीकार।

बंधु हों मेरे सुखी हो क्षेम–मंगल–योग
शपथ आयुध की यही बस राज्य का उपभोग।

सिंधु वेष्टित भूमि पर मुझको सुलभ अधिकार
धर्म के बिन इंद्र–पद मुझको न अंगीकार।

बिन तुम्हारे, भरत औ’ शत्रुघ्न बिन, सुखसार
दे मुझे जो वस्तु उसको अग्नि कर दे क्षार।

भातृवत्सल भरत ने, होता मुझे अनुमान,
आ अयोध्या में किया कुलधर्म का जब ध्यान,

और सुन, मैंने बना कर जटा वल्कल–वेश,
अनुज सीता सह बसाया है विपिन का देश,

स्नेह–आतुर चेतना में विकलता दुख–जन्य,
देखने आये भरत हमको, न कारण अन्य।

अप्रिय कटु, माँ को सुना, कर तात को अनुकूल
राज्य लौटाने मुझे आये न इसमें भूल।

भरत मनव श्रेष्ठ देकर सैन्य को आवास,
चले पैदल देखने तापस–कुटीर–निवास।

तापसालय में विलोका भरत ने वह धाम,
जानकी लक्ष्मण सहित जिसमें विराजित राम।

भरत तब दौड़े रुदित दुख मोह से आक्रांत,
चरण तक पहुँचे न भू पर गिर पड़े दुख भ्रांत।

‘आर्य‘ ही बस कह सके धर्म में निष्णात
कण्ठ गद्गद् से न निकली अन्य कोई बात।

जटा वल्कल सहित उनका कृष विवर्ण शरीर
कण्ठ से पहचान भेंटे अंक भर रघुवीर

भरत को तब भेंटकर शिर सूँघ कर सप्रेम
अंक में ले राम ने पूछा कुशल ओ’ क्षेम।

~ महादेवी वर्मा

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