Which brother of Ravana joined and helped Lord Rama?

Which brother of Ravana joined and helped Lord Rama?

Vibhishana (विभीषण) is a significant character in the epic Ramayana, who served Rama during the fight of Rama and Ravana though he was the brother of Ravana, the king of Lanka. Although Vibhishana was born in Rakshasa dynasty he was a noble character. Vibhishana was against the kidnapping and abduction of Sita. He advised his elder brother Ravana to return Sita to her husband Rama. He was exiled by Ravana and joined Rama’s army. Later, when Rama defeated Ravana, he coroneted Vibhishana as the king of Lanka.

Vibhishana was a ‘Sattvic’ person with pure heart and soul. From his early childhood he was a pious man and spent all his time in meditation on the name of Lord. Brahma was propitiated by his devotion. He appeared eventually and offered Vibhishana any boon he wanted. Vibhishana said that only thing he wanted was to fix his mind on the lotus feet of the Lord. He also prayed to have strength so that he could always remain in association with Lord Vishnu and also wanted a ‘Darshan’ (holy sight) of the Lord. Vibhishana’s prayer was granted. He gave up his wealth and family and joined Rama, who was the incarnation of Lord Vishnu.

विभीषण का जीवन परिचय

विभीषण रामायण का एक ऐसा पात्र था जिसका जन्म तो एक राक्षस कुल में हुआ था लेकिन स्वभाव से वह धर्मावलंबी था। उसने भगवान श्रीराम व रावण के युद्ध के समय धर्म का साथ दिया व रावण वध में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उसने युद्ध में कई बार श्रीराम व उनकी सेना का उचित मार्गदर्शन किया तथा अंत में लंका का राजा बना।

विभीषण का जन्म व परिवार

विभीषण का जन्म ब्राह्मण-राक्षस परिवार में हुआ था। उसके पिता महान ऋषि विश्रवा व माँ राक्षसी कैकसी थी। उसके दो बड़े भाई लंकापति रावण व कुंभकरण तथा एक बहन शूर्पनखा थी। इसके अलावा उसके कई और सौतेले भाई-बहन भी थे।

विभीषण का विवाह सरमा नामक स्त्री से हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार जब माता सीता अशोक वाटिका में थी तब उनकी सहायता करने वाली त्रिजटा विभीषण की ही पुत्री थी।

विभीषण की हनुमान से भेंट

जब रावण माता सीता का हरण करने जाने वाला था तब विभीषण ने उनके छोटे भाई व लंका के मंत्री होने के नाते उसे परामर्श दिया कि वह ऐसा कुकर्म ना करे। माता सीता के हरण के बाद भी उसने कई बार रावण को उन्हें वापस लौटा देने की मांग की लेकिन उनकी एक नही सुनी गयी।

माता सीता के हरण के कुछ माह पश्चात श्रीराम के दूत हनुमान उनका पता लगाते हुए लंका आए। जब हनुमान ने राक्षस नगरी में एक विष्णु भक्त का घर देखा तो वे ब्राह्मण वेश में उनसे मिलने पहुँच गए। तब विभीषण की प्रथम बार हनुमान से भेंट हुई। हनुमान को विभीषण से मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई।

अगले दिन विभीषण ने देखा कि हनुमान को मेघनाद के द्वारा बंदी बना लिया गया है। तब उसने रावण से उसे मुक्त कर देने की याचना की लेकिन रावण ने उसकी नहीं सुनी। रावण ने हनुमान की पूँछ में आग लगवा दी जिसके फलस्वरूप हनुमान ने पूरी लंका में आग लगा दी।

रावण का विभीषण को लंका से निष्कासित करना

माता सीता का पता लगने के पश्चात श्रीराम वानर सेना के साथ समुंद्र तट तक पहुँच गए तथा लंका तक सेतु बनाने का कार्य करने लगे। तब रावण के दरबार में मंत्रणा बुलायी गयी जिसमे विभीषण ने पूरे जोर-शोर से माता सीता को लौटा देने व श्रीराम की शरण में जाने को कहा।

रावण को विभीषण के द्वारा बार-बार एक ही बात कहे जाने से क्रोध आ गया व उसने सभी के सामने विभीषण को ठोकर मारकर सीढ़ियों से नीचे गिरा दिया। इसी के साथ उसने विभीषण को लंका राज्य से निष्कासित कर दिया। इसके बाद विभीषण अपने विश्वस्त मित्रों के साथ लंका से निकल गए।

विभीषण का श्रीराम की शरण में जाना

लंका से निष्कासित होने के पश्चात विभीषण ने धर्म का साथ देते हुए श्रीराम की शरण में जाने का निर्णय लिया। वे आकाश मार्ग से समुंद्र पार करके श्रीराम के पास पहुंचे व सारी घटना का वृतांत सुनाया। शुरू में श्रीराम के मंत्रियों इत्यादि ने शत्रु के भाई को अपनाने पर संदेह जताया तथा विभीषण को उनका भेदी बताया लेकिन हनुमान ने श्रीराम को विभीषण के चरित्र से अवगत करवाया।

हनुमान के द्वारा विभीषण के साथ हुई अपनी भेंट का वृतांत सुनने के पश्चात व शरण में आए शत्रु की भी सहायता करने के धर्म का पालन करने के लिए श्रीराम ने विभीषण को शरण दे दी। इसके साथ ही श्रीराम का उद्देश्य लंका पर आधिपत्य करना नहीं था बल्कि उन्हें तो बस रावण का वध करके माता सीता को पुनः प्राप्त करना था।

रावण वध के पश्चात लंका राजा विहीन हो जाती इसलिये यह सोचकर की उसके बाद वे विभीषण को राजा बना सकते हैं, उन्होंने विभीषण को स्वीकार कर लिया व उसी समय उनका लंका के राजा के तौर पर राज्याभिषेक भी कर दिया।

विभीषण के द्वारा युद्ध में श्रीराम की सहायता करना

विभीषण रावण का भाई था व लंका का मंत्री भी, इसलिये उसे लंका के सभी छोटे-बड़े रहस्य ज्ञात थे। इसी का लाभ उसने युद्ध में उठाया। उसने बहुत बार श्रीराम तथा उनकी सेना की युद्ध में सहायता की व उन्हें विजयी बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उदाहरण के तौर पर:

  • उनके द्वारा प्रतिदिन किसी भी महत्वपूर्ण राक्षस के युद्धभूमि में आने पर उसकी शक्तियों व कमजोरियों का वृतांत करना।
  • कुंभकरण को समझाने का प्रयास करना व श्रीराम के साथ मिलने का प्रस्ताव रखना।
  • लक्ष्मण के मुर्छित होने पर लंका के राजवैद्य सुषेण के बारे में बताना।
  • मेघनाद के अपनी कुलदेवी निकुम्बला के यज्ञ को लक्ष्मण की सहायता से विफल करवाना।
  • मेघनाद की मृत्यु में अपना महत्वपूर्ण योगदान देना इत्यादि।

विभीषण के द्वारा श्रीराम की सबसे महत्वपूर्ण सहायता अंतिम युद्ध में की गयी जब आकाश मार्ग में श्रीराम व रावण का भीषण युद्ध चल रहा था। उस समय श्रीराम लगातार रावण का मस्तक काटे जा रहे थे लेकिन वह पुनः जीवित हो उठता। यह देखकर विभीषण श्रीराम के पास गए व उन्हें रावण की नाभि में अमृत होने की बात बतायी।

श्रीराम ने विभीषण के कहे अनुसार आग्नेय अस्त्र का प्रयोग करके रावण की नाभि का अमृत सुखा दिया तथा फिर ब्रह्मास्त्र का अनुसंधान करके उसका वध कर दिया।

विभीषण का लंकापति बनना व मंदोदरी से विवाह

रावण वध के पश्चात श्रीराम के आदेश पर लक्ष्मण के द्वारा विभीषण का राज्याभिषेक कर दिया गया। लंकापति बनते ही विभीषण ने माता सीता को सम्मान सहित मुक्त करने का आदेश दिया। श्रीराम ने रावण की प्रमुख पत्नी मंदोदरी के साथ विवाह करने के लिए विभीषण को कहा। विभीषण ने इसे स्वीकार कर लिया तथा मंदोदरी के भी मान जाने पर दोनों का विवाह हो गया।

इसके बाद विभीषण श्रीराम व अन्य लोगों के साथ पुष्पक विमान पर बैठकर अयोध्या गए। वहां जाकर उन्होंने उनका राज्याभिषेक देखा व कुछ दिन अयोध्या में व्यतीत करने के पश्चात पुनः लंका लौट गए। विभीषण ने लंका में धर्म का शासन स्थापित किया तथा कई वर्षों तक राज करने के बाद अपनी देह का त्याग कर दिया।

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