चाकुओं का शहर सोलिंगन

चाकुओं का शहर सोलिंगन

शहर में चाक़ू तेज करने के लिए इस्तेमाल होने वाले पत्थर राइन नदी के पीछे स्तिथ एफिल क्षेत्र की खदानों से लाए जाते थे। आमतौर पर ये 2 मीटर व्यास के होते थे। उनकी कीमत तभी अदा की जाती थी जब कुछ वक्त उन्हें इस्तेमाल करने के बाद सुनिश्चित हो जाता कि वे पक्के हैं। यदि कोई पत्थर बीच में टूट जाता और उससे लगी चोट से कोई कारीगर मारा जाता तो पत्थर को उसकी कब्र पर लगा दिया जाता था।

आजकल शहर में कई आधुनिक चाक़ू निर्माता कम्पनियां काम कर रही है। ऐसी ही एक कम्पनी की चौथी पीढ़ी के कार्ल पीटर बोर्न नामक उधमी बताते है कि उनकी कम्पनी की स्थापना 1919 में हुई थी। कम्पनी में आज भी सभी चाकू हाथों से बनाए जाते है और निर्माण प्रक्रिया के दौरान करीब 50 बार वे विभिन्न हाथो से गुजरते है। इन्हे अंतिम रूप देने से पहले इन पर और भी कारीगर काम करते है।

लकड़ी के स्टूल पर बैठे ग्राइंडर अपनी मशीन पर चाकू को धार देते है। इस काम में उनके हाथ बेहद माहिर हो चुके है। कुछ ही समय में वे लोहे के टुकड़े को एक बेहद धारदार चाकू में बदल देते है। यहां काम करने वालों में अनुभव का खूब महत्व हैं। एक कारीगर रॉल्फ वैक 82 वर्ष की आयु में भी चाकुओ को धार देने का काम कर हैं। उन्होंने 1951 में यहां काम शुरू किया था और अब वह नर्म पनीर काटने के लिए इस्तेमाल होने वाले चाकू तैयार करते हैं। यह कम्पनी दुनिया भर में 200 तरह के चाकू भेजती हैं। इनमे छोटे चाकुओं से लेकर बेहद महंगे ‘द नाइफ‘ नामक ‘सुपर नाइफ‘ भी शामिल हैं जिन्हे तैयार करने में लम्बा समय लगता है।

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