अन्नकूट एक प्रकार से सामुहिक भोज का आयोजन है। इस दिन प्रातः गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। शाम को गोवर्धन की पूजा की जाती है। पूजा मे धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है। गोवर्धन में ओंगा (अपामार्ग) अनिवार्य रूप से रखा जाता है। पूजा के उपरांत गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएँ उनकी जय बोलते हुए लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराते हुए तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।
Govardhan Puja Greetings For Hindu Devotees
गोवर्धन पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दीपावली के दूसरे दिन की जाती है।
गोवर्धन पूजा की ऐसी है विधि और पूजा मंत्र
गोवर्धन पूजा के दिन सुबह-सवेरे उठकर शरीर पर तेल की मालिश करने के बाद में स्नान करने का प्राचीन परंपरा है। इसलिए इस दिन सुबह जल्दी उठकर पूजन सामग्री के साथ पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देवी-देवता का ध्यान करिए। पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा भाव से तैयार कीजिए। इसे लेटे हुए पुरुष की आकृति में बनाया जाता है। यदि आपसे ठीक तरीके से नहीं बने तो आप चाहे जैसा बना लीजिए। प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप इसे तैयार कर लीजिए फूल, पत्ती, टहनियों एवं गाय की आकृतियों से या फिर आप अपनी सुविधा के अनुसार इसे किसी भी आकृति से सजा लीजिए।
ऐसे बनाएं आकृति और करें पूजा
जब गोवर्धन की आकृति तैयार हो जाए तो मध्य में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। साथ ही नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लें और वहां एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दें। इसके बाद उस पात्र में दूध, दही, गंगाजल, शहद और बताशे इत्यादि डालकर पूजा करें। इसके बाद गोवर्धन पूजा मंत्र ‘गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक। विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।’ का जप करें और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांटकर स्वयं ग्रहण करें।
कई स्थानों पर ऐसी भी है मान्यता
कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा के साथ ही गायों को स्नान कराने की उन्हें सिंदूर इत्यादि पुष्प मालाओं से सजाए जाने की परंपरा भी है। इस दिन गाय का पूजन भी किया जाता है तो यदि आप गाय को स्नान कराकर उसे सजा सकते हैं या उसका श्रृंगार कर सकते हैं तो कोशिश करिए कि गाय का श्रृंगार करें और उसके सींघ पर घी लगाएं और इसके बाद गाय माता को गुड़ खिलाएं। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मीजी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और जातक के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
गोवर्धन पूजा की ऐसी मिलती है कथा
एक समय की बात है श्रीकृष्ण अपने मित्र ग्वालों के साथ पशु चराते हुए गोवर्धन पर्वत जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि बहुत से व्यक्ति एक उत्सव मना रहे थे। श्रीकृष्ण ने इसका कारण जानना चाहा तो वहां उपस्थित गोपियों ने उन्हें कहा कि आज यहां मेघ व देवों के स्वामी इंद्रदेव की पूजा होगी और फिर इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे। फलस्वरूप खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण-पोषण होगा। यह सुन श्रीकृष्ण सबसे बोले कि इंद्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है जिनके कारण यहां वर्षा होती है और सबको इंद्र से भी बलशाली गोवर्धन का पूजन करना चाहिए।
तब से करने लगे सभी गोवर्धन की पूजा
श्रीकृष्ण की बात से सहमत होकर सभी गोवर्धन की पूजा करने लगे। जब यह बात इंद्रदेव को पता चली तो उन्होंने क्रोधित होकर मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलाधार बारिश करें। भयावह बारिश से भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण के पास गए। यह जान श्रीकृष्ण ने सबको गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलने के लिए कहा। सभी गोप-ग्वाले अपने पशुओं समेत गोवर्धन की तराई में आ गए। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका अंगुली पर उठाकर छाते-सा तान दिया। इंद्रदेव के मेघ सात दिन तक निरंतर बरसते रहें किंतु श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह अद्भुत चमत्कार देखकर इंद्रदेव असमंजस में पड़ गए। तब ब्रह्माजी ने उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं। सत्य जानकर इंद्रदेव श्रीकृष्ण से क्षमायाचना करने लगे। श्रीकृष्ण के इंद्रदेव का अहंकार चूर-चूर कर दिया था अतः उन्होंने इंद्रदेव को क्षमा किया और सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को भूमितल पर रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर वर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाएं। मान्यता है कि तबसे ही यह पर्व मनाये जाने की परंपरा शुरू हुई।