ऊँची उड़ान

ऊँची उड़ान

गिद्धों का एक झुण्ड खाने की तलाश में भटक रहा था।

उड़ते – उड़ते वे एक टापू पर पहुँच गए। वो जगह उनके लिए स्वर्ग के समान थी। हर तरफ खाने के लिए मेंढक, मछलियाँ और समुद्री जीव मौजूद थे और इससे भी बड़ी बात ये थी कि वहां इन गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था और वे बिना किसी भय के वहां रह सकते थे।

युवा गिद्ध कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे, उनमे से एक बोला, “वाह! मजा आ गया, अब तो मैं यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला, यहाँ तो बिना किसी मेहनत के ही हमें बैठे -बैठे खाने को मिल रहा है!”

बाकी गिद्ध भी उसकी हाँ में हाँ मिलाकर ख़ुशी से झूमने लगे।

सबके दिन मौज -मस्ती में बीत रहे थे लेकिन झुण्ड का सबसे बूढ़ा गिद्ध इससे खुश नहीं था।

एक दिन अपनी चिंता जाहिर करते हुए वो बोला, “भाइयों, हम गिद्ध हैं, हमें हमारी ऊँची उड़ान और अचूक वार करने की ताकत के लिए जाना जाता है। पर जबसे हम यहाँ आये हैं हर कोई आराम तलब हो गया है… ऊँची उड़ान तो दूर ज्यादातर गिद्ध तो कई महीनो से उड़े तक नहीं हैं…और आसानी से मिलने वाले भोजन की वजह से अब हम सब शिकार करना भी भूल रहे हैं… ये हमारे भविष्य के लिए अच्छा नहीं है… मैंने फैसला किया है कि मैं इस टापू को छोड़ वापस उन पुराने जंगलो में लौट जाऊँगा… अगर मेरे साथ कोई चलना चाहे तो चल सकता है!”

बूढ़े गिद्ध की बात सुन बाकी गिद्ध हंसने लगे। किसी ने उसे पागल कहा तो कोई उसे मूर्ख की उपाधि देने लगा। बेचारा बूढ़ा गिद्ध अकेले ही वापस लौट गया।

समय बीता, कुछ वर्षों बाद बूढ़े गिद्ध ने सोचा, “ना जाने मैं अब कितने दिन जीवित रहूँ, क्यों न एक बार चल कर अपने पुराने साथियों से मिल लिया जाए!”

लम्बी यात्रा के बाद जब वो टापू पे पहुंचा तो वहां का दृश्य भयावह था।

ज्यादातर गिद्ध मारे जा चुके थे और जो बचे थे वे बुरी तरह घायल थे।

“ये कैसे हो गया?”, बूढ़े गिद्ध ने पूछा।

कराहते हुए एक घायल गिद्ध बोला, “हमे क्षमा कीजियेगा, हमने आपकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया और आपका मजाक तक उड़ाया… दरअसल, आपके जाने के कुछ महीनो बाद एक बड़ी सी जहाज इस टापू पे आई… और चीतों का एक दल यहाँ छोड़ गयी। चीतों ने पहले तो हम पर हमला नहीं किया, पर जैसे ही उन्हें पता चला कि हम सब न ऊँचा उड़ सकते हैं और न अपने पंजो से हमला कर सकते हैं…उन्होंने हमे खाना शुरू कर दिया। अब हमारी आबादी खत्म होने की कगार पर है .. बस हम जैसे कुछ घायल गिद्ध ही ज़िंदा बचे हैं !”

बूढ़ा गिद्ध उन्हें देखकर बस अफ़सोस कर सकता था, वो वापस जंगलों की तरफ उड़ चला।

दोस्तों, अगर हम अपनी किसी काबिलियत का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो धीरे-धीरे हम उसे खो देते हैं।

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