गौरक्षा एवं गौसंवर्धन का पर्व है गोवर्धन पूजा
यह आयोजन एक प्रकार का सामूहिक भोज का आयोजन है। उस दिन अनेको प्रकार के व्यंजन साबुत मुंग, कढ़ी चावल, बाजरा तथा अनेको प्रकार की सब्जिया एक जगह मिलकर बनाई जाती थी। इसे अन्नकूट कहा जाता था। मंदिरो में इसी अन्नकूट को सभी नगर वासी इकठ्ठा कर उसे प्रसाद के रूप में वितरित करते थे।
यह आयोजन इसलिए किया जाता था की शरद ऋतू के आगमन पर मेघ देवता देवराज इंद्र को पूजन कर प्रसन किया जाता की वह ब्रज में वर्षा करवाए जिससे अन्न पैदा हो तथा ब्रज वासियो का भरण पोषण हो सके। एक बार भगवान् श्री कृष्ण ग्वाल बालो के साथ गऊ चराते हुए गोवर्धन पर्वत के पास पहुचे वह देखकर हैरान हो गए की सेकड़ो गोपिया छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर बड़े उत्साह से उत्सव मना रही थी। भगवान् श्री कृष्ण ने गोपियो से इस बारे में पूछा। गोपियो ने बतलाया की ऐसा करने से इंद्र देवता प्रसन होंगे और ब्रज में वर्षा होगी जिससे अन्न होगा।
श्री कृष्ण ने गोपिओ से कहा की इंद्र देवता में ऐसी क्या शक्ति है जो पानी बरसाते है। इससे ज्यादा तो शक्ति इस गोवर्धन पर्वत में है। इसी कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र देवता के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए।
ब्रज वासी भगवान श्री कृष्ण के बातये अनुसार गोबर्धन की पूजा में जुट गए। सभी ब्रजवासी घर से अनेको प्रकार के मिष्ठान बना पर्वत की तलहटी में पहुच भगवान् श्री कृष्ण द्वारा बताई विधि के अनुसार गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।
भगवान् श्री कृष्ण द्वारा किये अनुष्ठान को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझ तथा क्रोधित होकर अहंकार में मेघो को आदेश दिया की वे ब्रज में मूसलाधार बारिश कर सभी कुछ तहस नहस कर दे।
मेघो ने देवराज इंद्र के आदेश का पालन कर वैसा ही किया। ब्रज में मूसलाधार बारिश होने तथा सभी कुछ नष्ट होते देख ब्रज वासी घबरा गए तथा श्री कृष्ण के पास पहुच कर इंद्र देवता के कोप से रक्षा का निवेदन करने लगे।
ब्रजवासियो की पुकार सुनकर भगवान् श्री कृष्ण बोले सभी नगरवासी अपनी गउओ सहित गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो। गोवर्धन पर्वत सबकी रक्षा करेगे। सभी ब्रजवासी अपने पशु धन के साथ गोवर्धन पर्वत की तलहटी में पहुच गए। तभी भगवान् श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ ऊँगली पर उठा कर छाता सा तान दिया। सभी ब्रज वासी अपने पशुओ सहित उस पर्वत के निचे जमा हो गए। सात दिन तक मूसलाधार वर्षा होती रही। सभी ब्रजवासियो ने पर्वत की शरण में अपना बचाव किया। भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र के कारण किसी भी ब्रज वसियो को कोई भी नुकसान नही हुआ।
यह चमत्कार देखकर देवराज इंद्र ने ब्रह्मा जी की शरण में गए तो ब्रह्मा जी ने उन्हें श्री कृष्ण की वास्विकता बताई। इंद्र देवता को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। ब्रज गए तथा भगवान् श्री कृष्ण के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगे। सातवे दिन श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को निचे रखा तथा ब्रजवासियो से कहा की आज से प्रत्येक ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की प्रत्येक वर्ष अन्नकूट द्वारा पूजा अर्चना कर पर्व मनाया करे। इस उत्सव को तभी से अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।