Poems In Hindi

बच्चों की हिन्दी कविताएं — 4to40 का हिन्दी कविताओ का संग्रह | Hindi Poems for Kids — A collection of Hindi poems for children. पढ़िए कुछ मजेदार, चुलबुली, नन्ही और बड़ी हिंदी कविताएँ. इस संग्रह में आप को बच्चो और बड़ो के लिए ढेर सारी कविताएँ मिलेंगी.

कनुप्रिया (इतिहास: सेतु – मैं): धर्मवीर भारती

Dharamvir Bharati

कनुप्रिया (इतिहास: सेतु – मैं): धर्मवीर भारती धर्मवीर भारती (२५ दिसंबर, १९२६- ४ सितंबर, १९९७) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक और सामाजिक विचारक थे। नीचे की घाटी से ऊपर के शिखरों पर जिस को जाना था वह चला गया – हाय मुझी पर पग रख मेरी बाँहों से इतिहास तुम्हें ले गया! सुनो कनु, सुनो क्या मैं सिर्फ एक …

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फूल मोमबत्तियां सपने: धर्मवीर भारती

फूल मोमबत्तियां सपने: धर्मवीर भारती धर्मवीर भारती (२५ दिसंबर, १९२६- ४ सितंबर, १९९७) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। उनका जन्म इलाहाबाद के अतर सुइया मुहल्ले में हुआ। उनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा और माँ का श्रीमती चंदादेवी था। स्कूली शिक्षा डी. ए. वी हाई स्कूल में हुई और उच्च शिक्षा …

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आओ मिलकर पेड़ लगायें: सुरिंदर शर्मा

आओ मिलकर पेड़ लगायें: सुरिंदर शर्मा

आओ मिलकर पेड़ लगायें: वृक्षारोपण पर कविता वृक्ष लगाने के लाभों पर हमारे पूर्वजों द्वारा लंबे समय तक जोर दिया गया है। पेड़ों की पूजा करना पेड़ लगाने के लाभों को स्वीकार करने का एक और तरीका है। पेड़ हमें छाया, फल, फूल और छाल प्रदान करते हैं। लेकिन पेड़ लगाने के सबसे महत्वपूर्ण लाभों में ताजा हवा (ऑक्सीजन) और …

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तू तुम आप: Bal Kavita on Good Manners & Etiquette

तू तुम आप - ओमप्रकाश बजाज - Bal Kavita on Good Manners & Etiquettes

तू तुम आप: ओमप्रकाश बजाज जी की शिष्टाचार एव आदर भाव पर हिंदी कविता तू तुम आप: शिष्ट या सभ्य पुरुषों का आचरण शिष्टाचार कहलाता है। दूसरों के प्रति अच्छा व्यवहार, घर आने वाले का आदर करना, आवभगत करना, बिना द्वेष और नि:स्वार्थ भाव से किया गया सम्मान शिष्टाचार कहलाता है। शिष्टाचार से जीवन महान् बनता है। हम लघुता सं …

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मिठाई: ओम प्रकाश बजाज की बाल-कविता

Mithai by Om Prakash Bajaj

भारतीय मिठाई पर ओम प्रकाश बजाज की बाल-कविता भारतीय मिठाइयाँ या मिष्ठान्न शक्कर, अन्न और दूध के अलग अलग प्रकार से पकाने और मिलाने से बनती हैं। खीर और हलवा सबसे सामान्य मिठाइयाँ हैं जो प्रायः सभी के घर में बनती हैं। ज्यादातर मिठाइयाँ बाज़ार से खरीदी जाती हैं। मिठाइयाँ बनाने वाले पेशेवर बावर्चियों को ‘हलवाई’ कहते हैं। भारत की संस्कृति …

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चश्मा: ओम प्रकाश बजाज जी की बाल-कविता

Chasma by Om Prakash Bajaj

चश्मा (Glasses या eyeglasses या spectacles) आँखों के सुरक्षा या उनकी क्षमता को बढ़ाने वाले उपकरण हैं जो काँच या कठोर प्लास्टिक के लेंसों से बने होते हैं। ये लेंस धातु या प्लास्टिक के एक ढाँचे (फ्रेम) में मढ़े हुए होते हैं। चश्मा: ओम प्रकाश बजाज जी की बाल-कविता दादा जी जब चश्मा लगाते, तभी वह अखबार पढ़ पाते। मुन्ना …

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ऐ मेरे वतन के लोगों: कवि प्रदीप का लोकप्रिय देशभक्ति गीत

ऐ मेरे वतन के लोगों - कवि प्रदीप

यूं तो भारतीय सिनेमा जगत में वीरों को श्रद्धांजलि देने के लिये अब तक न जाने कितने गीतों की रचना हुयी है लेकिन ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंखो मे भर लो पानी, जो शहीद हुये है उनकी जरा याद करो कुर्बानी।’ जैसे देश प्रेम की अछ्वुत भावना से ओत प्रोत रामचन्द्र द्विवेदी उर्फ कवि प्रदीप के इस गीत …

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हमारा देश: Agyeya Desh Prem Hindi Poem about Indian Culture

हमारा देश By Agyeya

हमारा देश: सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ इन्ही तृण – फूस – छप्पर से ढके ढुलमुल गँवारू झोंपड़ों में ही हमारा देश बस्ता है। इन्ही के ढोल – मादल – बांसुरी के उमगते सुर में हुनरी साधना का रस बस्ता है। इन्ही के मर्म को अनजान शहरों की ढकी लोलुप विषैली वासना का सांप डंसता है। इन्ही में लहराती अल्हड़ अपनी …

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मातृभूमि: Rashtrakavi Maithili Sharan Gupt Classic Desh Prem Poem

Rashtrakavi Maithili Sharan Gupt Classic Desh Prem Poem मातृभूमि

मातृभूमि: राष्ट्रकवि मैथिलि शरण गुप्त जी की देशप्रेम कविता नीलांबर परिधान हरित तट पर सुन्दर है। सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है॥ नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं। बंदीजन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है॥ करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की। हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की॥ जिसके रज में लोट-लोट कर बड़े हुये हैं। घुटनों …

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रे प्रवासी जाग: Ramdhari Singh Dinkar Desh Prem Nostalgia Poem

Ramdhari Singh Dinkar Desh Prem Nostalgia Poem रे प्रवासी जाग

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की कविता ‘रे प्रवासी जाग’ रे प्रवासी‚ जाग‚ तेरे देश का संवाद आया। भेदमय संदेश सुन पुलकित खगों ने चंचु खोली‚ प्रेम से झुक–झुक प्रणति में पादपों की पंक्ति डोली। दूर प्राची की तटी से विश्व के तृण–तृण जगाता‚ फिर उदय की वायु का वन में सुपरिचित नाद आया। रे प्रवासी‚ जाग‚ तेरे देश का संवाद …

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