Poems For Kids

Poetry for children: Our large assortment of poems for children include evergreen classics as well as new poems on a variety of themes. You will find original juvenile poetry about trees, animals, parties, school, friendship and many more subjects. We have short poems, long poems, funny poems, inspirational poems, poems about environment, poems you can recite

तेरे बिन – रमेश गौड़

जैसे सूखा ताल बच रहे या कुछ कंकड़ या कुछ काई, जैसे धूल भरे मेले में चलने लगे साथ तन्हाई, तेरे बिन मेरे होने का मतलब कुछ कुछ ऐसा ही है, जैसे सिफ़रों की क़तार बाकी रह जाए बिना इकाई। जैसे ध्रुवतारा बेबस हो, स्याही सागर में घुल जाए जैसे बरसों बाद मिली चिठ्ठी भी बिना पढ़े घुल जाए तेरे …

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तुम जानो या मैं जानूँ – शंभुनाथ सिंह

जानी अनजानी‚ तुम जानो या मैं जानूँ। यह रात अधूरेपन की‚ बिखरे ख्वाबों की सुनसान खंडहरों की‚ टूटी मेहराबों की खंण्डित चंदा की‚ रौंदे हुए गुलाबों की जो होनी अनहोनी हो कर इस राह गयी वह बात पुरानी – तुम जानो या मैं जानूँ। यह रात चांदनी की‚ धुंधली सीमाओं की आकाश बांधने वाली खुली भुजाओं की दीवारों पर मिलती …

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तुम कभी थे सूर्य – चंद्रसेन विराट

तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये‚ थे कभी मुखपृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये। यवनिका बदली कि सारा दृष्य बदला मंच का‚ थे कभी दुल्हा स्वयं‚ बारातियों तक आ गये। वक्त का पहिया किसे कब‚ कहां कुचले क्या पता‚ थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये। देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं‚ …

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तुम्हारे पत्र – अनिल वर्मा

प्राण जैसे भाव प्यासे होंठ–से अक्षर तुम्हारे पत्र बीतते, बीते पलों की इन्द्रधनुषी याद का संगीतमय जादू या सहज अनुराग के आनंद की कुछ गुनगुनाती धूप की खुशबू रच गये बेकल हृदय के गाँव में पायल बंधे कुछ पाँव किस अधिकार से अक्सर तुम्हारे पत्र प्राण जैसे भाव प्यासे होंठ–से अक्षर तुम्हारे पत्र ∼ अनिल वर्मा

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उम्र बढ़ने पर – महेश चंद्र गुप्त ‘खलिश’

उम्र बढ़ने पर हमें कुछ यूँ इशारा हो गया‚ हम सफ़र इस ज़िंदगी का और प्यारा हो गया। क्या हुआ जो गाल पर पड़ने लगी हैं झुर्रियाँ‚ हर कदम पर साथ अब उनका गवारा हो गया। जुल्फ़ व रुखसार से बढ़ के भी कोई हुस्न है‚ दिल हसीं उनका है ये हमको नज़ारा हो गया। चुक गई है अब जवानी‚ …

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तुम्हारी उम्र वासंती – दिनेश प्रभात

लिखी हे नाम यह किसके, तुम्हारी उम्र वासंती? अधर पर रेशमी बातें, नयन में मखमली सपने। लटें उन्मुक्त­सी होकर, लगीं ऊंचाइयाँ नपनें। शहर में हैं सभी निर्थन, तुम्हीं हो सिर्फ धनवंती। तुम्हारा रूप अंगूरी तुम्हारी देह नारंगी। स्वरों में बोलती वीणा हँसी जैसे कि सारंगी। मुझे डर है न बन जाओ कहीं तुम एक किंवदंती। तुम्हें यदि देख ले तो, …

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वही बोलें – संतोष यादव ‘अर्श’

सियासत के किले हरदम बनाते हैं, वही बोलें जो हर मसले पे कुछ न कुछ बताते हैं, वही बोलें। बचत के मामले में पूछते हो हम गरीबों से? विदेशी बैंकों में जिनके खाते हैं, वही बोलें। लगाई आग किसने बस्तियों में, किसने घर फूंके दिखावे में जो ये शोले बुझाते हैं, वही बोलें। मुसव्विर मैं तेरी तस्वीर की बोली लगाऊं …

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विज्ञान विद्यार्थी का प्रेम गीत – धर्मेंद्र कुमार सिंह

अवकलन समाकलन फलन हो या चलन­कलन हरेक ही समीकरण के हल में तू ही आ मिली। घुली थी अम्ल क्षार में विलायकों के जार में हर इक लवण के सार में तू ही सदा घुली मिली। घनत्व के महत्व में गुरुत्व के प्रभुत्व में हर एक मूल तत्व में तू ही सदा बसी मिली। थी ताप में थी भाप में …

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गाँव के कुत्ते – सूंड फैजाबादी

हे मेरे गाँव के परमप्रिय कुत्ते मुझे देख–देख कर चौंकते रहो और जब तक दिखाई पडूं भौंकते रहो, भौंकते रहो, मेरे दोस्त भौंकते रहो। इसलिए की मैं हाथी हूं गाँव भर का साथी हूं बच्चे, बूढ़े, जवान, सभी छिड़कते हैं जान मगर तुम खड़ा कर रहे हो विरोध का झंडा बेकार का वितंडा। अपना तो ऐसे–वैसों से कोई वास्ता नहीं …

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गाँव की तरफ – उदय प्रताप सिंह

कुछ कह रहे हैं खेत और खलियान गाँव की तरफ, पर नहीं सरकार का है ध्यान गाँव की तरफ। क्या पढ़ाई‚ क्या सिंचाई‚ क्या दवाई के लिये, सिर्फ काग़ज़ पर गए अनुदान गाँव की तरफ। शहर में माँ–बाप भी लगते मुसीबत की तरह, आज भी मेहमान है मेहमान गाँव की तरफ। इस शहर के शोर से बहरे भी हो सकते …

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