Nida Fazli

Muqtida Hasan Nida Fazli known as Nida Fazli (born 12 October 1938) is an Indian Hindi and Urdu poet. Nida Fazli is a poet of various moods and to him the creative sentiment and inner urge are the sources of poetry. He thinks that the feeling of a poet is similar to an artist: like a painter or a musician.

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता – निदा फ़ाज़ली

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता - निदा फ़ाज़ली

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो जहाँ उमीद हो सकी वहाँ नहीं मिलता कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता ये …

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यहाँ भी, वहाँ भी – निदा फ़ाज़ली

यहाँ भी, वहाँ भी - निदा फ़ाज़ली

इंसान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी अल्लाह निगहबान यहाँ भी है वहाँ भी खूँख्वार दरिन्दों के फ़क़त नाम अलग हैं शहरों में बयाबान यहाँ भी है वहाँ भी रहमान की कुदरत हो या भगवान की मूरत हर खेल का मैदान यहाँ भी है वहाँ भी हिंदू भी मज़े में है‚ मुसलमाँ भी मजे में इन्सान परेशान यहाँ भी …

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लगाव – निदा फ़ाज़ली

लगाव - निदा फ़ाज़ली

तुम जहाँ भी रहो उसे घर की तरह सजाते रहो गुलदान में फूल सजाते रहो दीवारों पर रंग चढ़ाते रहो सजे बजे घर में हाथ पाँव उग आते हैं फिर तुम कहीं जाओ भले ही अपने आप को भूल जाओ तुम्हारा घर तुम्हें ढूंढ कर वापस ले आएगा ~ निदा फ़ाज़ली

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अहतियात – निदा फ़ाज़ली

अहतियात - निदा फ़ाज़ली

घर से बाहर जब भी जाओ तो ज्यादा से ज्यादा रात तक लौट आओ जो कई दिन तक ग़ायब रह कर वापस आता है वो उम्र भर पछताता है घर अपनी जगह छोड़ कर चला जाता है। ~ निदा फ़ाज़ली

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निदा फ़ाज़ली के दोहे

निदा फ़ाज़ली के दोहे

युग युग से हर बाग का, ये ही एक उसूल जिसको हँसना आ गया, वो ही मट्टी फूल। पंछी, मानव, फूल, जल, अलग–अलग आकार माटी का घर एक ही, सारे रिश्तेदार। बच्चा बोला देख कर, मस्जिद आलीशान अल्ला तेरे एक को, इतना बड़ा मकान। अन्दर मूरत पर चढ़े घी, पूरी, मिष्टान मंदिर के बाहर खड़ा, ईश्वर माँगे दान। आँगन–आँगन बेटियाँ, …

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बात कम कीजे – निदा फ़ाज़ली

बात कम कीजे - निदा फ़ाज़ली

बात कम कीजे, ज़िहानत को छिपाते रहिये यह नया शहर है, कुछ दोस्त बनाते रहिये दुश्मनी लाख सही, ख़त्म न कीजे रिश्ता दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये यह तो चेहरे का कोई अक्स है, तस्वीर नहीं इसपे कुछ रंग अभी और चढ़ाते रहिये ग़म है आवारा, अकेले में भटक जाता है जिस जगह रहिये वहाँ मिलते मिलाते …

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वालिद की वफ़ात पर – निदा फ़ाज़ली

वालिद की वफ़ात पर - निदा फाज़ली

तुम्हारी कब्र पर मैं फातिहा पढ़ने नहीं आया मुझे मालूम था तुम मर नहीं सकते तुम्हारी मौत की सच्ची खबर जिसने उड़ाई थी वो झूठा था वो तुम कब थे? कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से हिल के टूटा था मेरी आँखें तुम्हारे मंजरों में कैद हैं अब तक मैं जो भी देखता हूँ सोचता हूँ वो… वही है जो तुम्हारी …

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नई सहर आएगी – निदा फ़ाज़ली

नई सहर आएगी - निदा फ़ाज़ली

रात के बाद नए दिन की सहर आएगी दिन नहीं बदलेगा तारीख़ बदल जाएगी हँसते–हँसते कभी थक जाओ तो छुप कर रो लो यह हँसी भीग के कुछ और चमक जाएगी जगमगाती हुई सड़कों पर अकेले न फिरो शाम आएगी किसी मोड़ पे डस जाएगी और कुछ देर यूँ ही जंग, सियासत, मज़हब और थक जाओ अभी नींद कहाँ आएगी …

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घर: दो कविताएं – निदा फ़ाज़ली

अहतियात घर से बाहर जब भी जाओ तो ज्यादा से ज्यादा रात तक लौट आओ जो कई दिन तक ग़ायब रह कर वापस आता है वो उम्र भर पछताता है घर अपनी जगह छोड़ कर चला जाता है। लगाव तुम जहाँ भी रहो उसे घर की तरह सजाते रहो गुलदान में फूल सजाते रहो दीवारों पर रंग चढ़ाते रहो सजे …

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