Narendra Chanchal

दरवाजे बंद मिले: नरेंद्र चंचल

दरवाजे बंद मिले: नरेंद्र चंचल

बार–बार चिल्लाया सूरज का नाम जाली में बांध गई केसरिया शाम दर्द फूटना चाहा अनचाहे छंद मिले दरवाज़े बंद मिले। गंगाजल पीने से हो गया पवित्र यह सब मृगतृष्णा है‚ मृगतृष्णा मित्र नहीं टूटना चाहा शायद फिर गंध मिले दरवाज़े बंद मिले। धीरे से बोल गई गमले की नागफनी साथ रहे विषधर पर चंदन से नहीं बनी दर्द लूटना चाहा …

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